रात आये तुम्हे नींद की दुनिया में ले जाये तुम भूल जाओ सब चिंता और परेशानियों को ना आये कोई स्वपन भी आज तुम्हे सताने को! आना है तो बस आकर चंदा तुम्हे लोरी सुना जाये, जुगनू और सितारे भी आज कहीं छुप जाएँ!!
कभी यहाँ कभी वहां मेरी कल्पना का कोई एक ठिकाना नहीं...कोई एक पता नहीं...शब्द जाने कहाँ से आ बहते जाते हैं जैसे रात्रि में मोगरे की खुशबू बहती है...चाहूँ तो एक पल में तीनो जहां महसूस कर लूं और चाहूँ तो तीनो जहां से छुप जाऊं...सूरज की पहली किरण सी कभी अंधियारी रातों में जुगनू की चमक सी...कभी तितली के रंगों सी सुन्दर हूँ तो कभी फूलों से बहती सुरभि सी....असंभव शब्द मेरे कोश में नहीं...सारा जहां इश्क़मय हो...कहीं कोई द्वेष,नफरत का रंग ना हो...बस इसलियें मैं छलकाती हूँ इश्क के रंग ...
3 comments:
जुगनू और सितारे कहीं छुप जायें तो वाकई में रात आ जाये
अरे ......सब कुछ उडेल दिया आपने !किसी नन्हे फ़रिश्ते के लिए है ?
बहुत सुंदर कल्पनाओं को शब्द से उकेरती कवितायें
सुरभि जी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर दस्तक दे
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