Tuesday, November 4, 2008

आज चाँद शायद कुछ खोया खोया था
सूरज भी कुछ मंदा था
न धूप में गर्मी थी ना ओस में नमी थी
जुगनुओ की टोली भी कुछ बुझी बुझी सी थी
कोयल की बोली की मीठास कम थी या शहद की पता नहीं
पर आज सब कुछ कहीं न कहीं आधा अधूरा सा था
कहीं आज तुम मुस्कुराना तो नहीं भूल गए थे?

14 comments:

सचिन श्रीवास्तव said...

खूबसूरत... स्वागत है वर्चुअल स्पेश में

बाल भवन जबलपुर said...

सुस्वागतम

सागर नाहर said...

तुम्हारी आँखों उदासी देख
चांद भी खो गया था, सूरज भी मंदा था
कोयल की बोली में मिठास भी कम हो गई
तो मैं भला कैसे मुस्कुरा पाता?
हाँ सचमुच मैं मुस्कुराना भूल गया..


सुरभिजी आपका हार्दिक स्वागत है।
॥दस्तक॥
गीतों की महफिल
तकनीकी दस्तक

रचना गौड़ ’भारती’ said...

इस पर उस गाने की पन्क्तियां याद आरही हैं
तू मुस्करा दे तो जाती बहार आजाये ।
कम लेकिन बहुत अच्छा लिखा है । लिख्ते रहिए ।
मेरे ब्लोग पर आकर भी कविता, गज़ल,शेर आदि का आनन्द लेसकते हैं ।

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

chalo thik hai, kalyan ho
narayan narayan

अभिषेक मिश्र said...

आज सब कुछ कहीं न कहीं आधा अधूरा सा था
कहीं आज तुम मुस्कुराना तो नहीं भूल गए थे?
हार्दिक स्वागत

विजयराज चौहान "गजब" said...

Bahut sundar !
विजयराज चौहान (गजब)
http://hindibharat.wordpress.com/
http://e-hindibharat.blogspot.com/
http://groups.google.co.in/group/hindi-bharat?hl=en

रोशन प्रेमरोगी said...

kavita to achhi hai lekin koyel ki boli kya apko sunane ko milati hai?

Unknown said...

wah.....aapki kavita padi to laga mujhe bhi kavita lakhni chahiye lakin....karna aasan nahi hai...
kash main bhi aapne bhawo ko shabdo main piro pata....to ...to...shayad main bhi kavita kar pata...

likhte rahe ...lakhni ko aapni pahchan banaye....

mere blog par aapka swagat hai....


jai ho...mangalmay ho

दिगम्बर नासवा said...

पर आज सब कुछ कहीं न कहीं आधा अधूरा सा था
कहीं आज तुम मुस्कुराना तो नहीं भूल गए थे

सुरभि जी
सुंदर कल्पना, अच्छा लेखन

मेरे ब्लोग पर आकर भी आनन्द लेसकते हैं

Amit K Sagar said...

ब्लोगिंग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लिखते रहिये. दूसरों को राह दिखाते रहिये. आगे बढ़ते रहिये, अपने साथ-साथ औरों को भी आगे बढाते रहिये. शुभकामनाएं.
--
साथ ही आप मेरे ब्लोग्स पर सादर आमंत्रित हैं. धन्यवाद.

Prakash Badal said...

बहुत बढिया रचना और लिखती रहें। आपकी रचनाओं के बिंबों से अहसास होता है कि आप और उंचा उडेंगी। शुभकामनाएं।

सुरभि said...

रोशन जी कोयल की बोली सुनने को 1 महीने पहले तक तो मिल ही जाती थी जब मैं भारत में थी लन्दन में अभी ढूँढना बाकी है पर फिर भी वो आवाज आज भी मेरी ज़िन्दगी में शामिल है:)

Anonymous said...

कोयल की बोली की मीठास कम थी या शहद की पता नहीं
atulneeya


-----------------------Vishal