तुमको जब भी करीब पाती हूँ
मैं हर गम को भूल जाती हूँ !
Thursday, November 11, 2010
Monday, September 6, 2010
बरसाते
कभी अच्छी लगती थी बरसाते मुझे
जब तेरे प्यार कि बारिश में भीगती थी मैं
आज भी अच्छी लगती हैं बरसाते
जब जी भर रोने को बारिश में भीगती हूँ मैं!
Posted by सुरभि at 8:22 PM 2 comments
Monday, August 23, 2010
Posted by सुरभि at 10:11 PM 3 comments
Tuesday, August 3, 2010
प्यार मत करना
माँ कहती थी
प्यार मत करना
पापा कहते थे
लड़कों से दूर ही रहना
दीदी कहती थी
पापा का नाम खराब मत करना
हमारे जैसे घरों कि लड़कियां प्यार नहीं करती!
पर माँ-पापा-दीदी आपने ये तो कभी बताया ही नहीं
कि जब मन किसी से बंधने लगे तो क्या करना,
जब कोई बिना बताये ज़िन्दगी में शामिल हो जाये
तो उसको कैसे बाहर करना
और आपने ये भी तो नहीं बताया
कि प्यार न होने के लिए क्या करना?
Posted by सुरभि at 6:15 PM 2 comments
Monday, July 26, 2010
पल
अंधियारी रात में
सड़क के किनारे
लेम्पपोस्ट के नीचे झरती
मद्धम मद्धम रौशनी में
बेंच पर बैठे
एक दूसरे को देखते
कुछ मुस्कुराते
कुछ आंसू लाते
कुछ बेफिक्र से बहते
कुछ गाते से पल
आँखों में ऐसे बस गए हैं
जैसे सीप में मोती !
Posted by सुरभि at 8:13 PM 2 comments
Sunday, March 21, 2010
क्यों भाई क्यों
यह कविता मेरे बचपन की सबसे सुनहरी स्मृति है. जो मुझे आज तक याद है. इस कविता के साथ ही मैने पहली बार मंच पर अकेले प्रस्तुति दी थी 15 अगस्त के अवसर पर. तब मैं कक्षा 5 में पढ़ती थी. इस कविता के बाद से विद्यालय में सब मुझे "क्यों भाई क्यों" के नाम से बुलाने लगे थे. यह कविता आज़ादी के काल की है गाँव गाँव में आज़ादी की अलख जगायी और इस कविता का अनेक भाषाओं में अनुवाद भी किया गया. कविता के बोल पूरी तरह से मुझे याद नही फिर भी कोशिश कर रही हूँ आप सबसे साथ इसे बाँटने की-
क्यों भाई क्यों
क्यों क्यों क्यों?
आसमान में इतने सारे
चमचम क्यूँ करते हैं तारे
इंद्रधनुष के सातों रंग हमें
लगे क्यूँ इतने प्यारे?
क्यों भाई क्यों
क्यों क्यों क्यों?
जवा कुसुम एक अकेला
होता क्यूँ है इतना लाल
झिलमिल झिलमिल करता रहता
जूही-चमेली का क्यों जाल?
क्यों भाई क्यों
क्यों क्यों क्यों?
फ़र फ़र कोवे तोते
आसमान में क्यों उड़ जाते
बिल्ली मौसी के बालों में पंख
नही फिर क्यों उग आते?
क्यों भाई क्यों
क्यों क्यों क्यों?
छोटे छोटे रामू राधा
रोज फिरे क्यूँ माँ के साथ
बर्तन घिसते, डाँटे सुनते
फिर भी नंगें , फैले हाथ?
क्यों भाई क्यों
क्यों क्यों क्यों?
क्यूँ है भूख ग़रीबी क्यों है
क्यों अनपढ़ है,निर्धन क्यों है
क्यों ना मिले न्याय सभी को
क्यों फैला है भ्रष्टाचार ?
क्यों भाई क्यों
क्यों क्यों क्यों?
आओ हम सब मिलके सोचे
हम सब एक परिवार
किसने की है बम की साज़िश
क्यों इतने सारे हथियार?
ले भाई ले हम सब ले!
Posted by सुरभि at 6:13 PM 9 comments
Thursday, February 18, 2010
एक कतरा आकाश, एक कतरा धरती,
दो किरणे सूरज,दो किरणे चांदनी की,
और बस दो बूँद तेरे इश्क की काफी है
ज़िन्दगी मुक्कमल करने के लिए !
Posted by सुरभि at 6:43 PM 6 comments