Thursday, November 20, 2008

अच्छा हुआ मुझे प्यार नही हुआ!

अच्छा हुआ मुझे प्यार नही हुआ,
वरना देखने पड़ते
कितने टूटे हुए ख्वाब
जो मेरे लिए ही बुने गये थे
और चुभती जिनकी किरचे भी
मेरे ही दिल मे.

अच्छा हुआ मुझे प्यार नही हुआ
वरना ना जाने
कितने चेहरे हो जाते उदास
जो मुझे देखकर खिल उठते थे
और उनसे छलनी हो जाता
मेरा ही हर्दय.

अच्छा हुआ मुझे प्यार नही हुआ
वरना ना जाने कितनी ही बातें बनती
व्यंग्य भी कसे जाते मुझ पर
और पहली बार
मुझे सबकुछ चुप चाप सहना पड़ता.

अच्छा हुआ मुझे प्यार नही हुआ
वरना देखनी पड़ती
कितनी ही तिरछी नज़रें
अपने ही प्रियजनो की
और सहना पड़ता
मुझे अपनो की प्रताड़ना को.

अच्छा हुआ मुझे प्यार नही हुआ
वरना मैं कर देती विश्वासघात
अपने ही घरवालों से
जो मेरे अपने थे
और उमर भर के लिए
मैं हो जाती सबसे पराई

और सब तो अच्छा ही हुआ
पर सबसे बुरा हुआ है ये
ना जाने कितने ही अफ़साने
बनने से पहले ही बिगड़ गये!

6 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

अपने मनोभावों को सुन्दर शब्द दिए हैं।

Anonymous said...

Achchha hua......., sundar bhav.

......lekin sath hi kuch pane se pahle hi kho diya aapne.


-------------------"Vishal"

सुरभि said...

Hmm..jaruri nahi aapko nahi lagata kavita aapke aas pas se bhi prerit ho sakti hai?aur khone pane ke pher me padne me main vishwas nahi rakhti.jo jab nirnay le liya us par aage koi pachtava nahi :)

adil farsi said...

अच्छा हुआ मुझे प्यार नहीं हुआ, सुंदर कविता है...बधाई

Prakash Badal said...

भावों की अच्छी अभिव्यक्ति

M VERMA said...

ना जाने कितने ही अफ़साने
बनने से पहले ही बिगड़ गये!
अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर