अलगनी में सुखाये थे कुछ ख्वाब धूप में मैंने,
बोलो सूरज क्या तुमने देखे हैं?
बुने थे कुछ सपने मैंने दिन ढले,
क्या चाँद तुमने ओढे हैं?
तह कर अलमारी में सजाया मैंने तब भी
चोरी हुए सब ख्वाब मेरे ,
तब मैंने ख्वाबो का एक कमरा बनाया
पर लगता है उसमे भी कोई आया
गुमसुम क्यूँ हो रोशनदान कहीं तुमने तो नहीं चुराए सब ख्वाब मेरे!
Friday, December 12, 2008
Posted by सुरभि at 1:20 AM 3 comments
Monday, November 24, 2008
ये आलम इश्क का है,
न खबर किसी और बात की है
आया था खुदा भी सामने एक दिन
पर हमें फुरसत कहाँ थी!
Posted by सुरभि at 2:21 PM 2 comments
Thursday, November 20, 2008
अच्छा हुआ मुझे प्यार नही हुआ!
अच्छा
मुझे
अच्छा
Posted by सुरभि at 3:38 PM 6 comments
Tuesday, November 11, 2008
रात आये तुम्हे नींद की दुनिया में ले जाये
तुम भूल जाओ सब चिंता और परेशानियों को
ना आये कोई स्वपन भी आज तुम्हे सताने को!
आना है तो बस आकर चंदा तुम्हे लोरी सुना जाये,
जुगनू और सितारे भी आज कहीं छुप जाएँ!!
Posted by सुरभि at 1:22 AM 3 comments
Tuesday, November 4, 2008
जब दिन ढला और रात आकर तुम्हे ले गयी,
तब पहली बार लगा मुझे सूरज से ज्यादा प्यार है !
Posted by सुरभि at 10:16 PM 4 comments
आज चाँद शायद कुछ खोया खोया था
सूरज भी कुछ मंदा था
न धूप में गर्मी थी ना ओस में नमी थी
जुगनुओ की टोली भी कुछ बुझी बुझी सी थी
कोयल की बोली की मीठास कम थी या शहद की पता नहीं
पर आज सब कुछ कहीं न कहीं आधा अधूरा सा था
कहीं आज तुम मुस्कुराना तो नहीं भूल गए थे?
Posted by सुरभि at 12:39 AM 14 comments