माय री ना तू मेहंदी लगाने की जिद कर
मुझे पहले से चढ़ा इश्क की मेहंदी का रंग
जो किसी दुकान में ढूंढे ना मिले
और जिसका रंग कभी ना फीका पड़े !
Friday, November 20, 2009
Posted by सुरभि at 7:15 PM
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5 comments:
बढ़िया.
सीधी और सच्ची बात कह दी आपने.
-Sulabh
लाजवाब और अच्छी रचना है ..........
सुरभि जी बहुत ही बेहतरीन भावो की अभिव्यक्ति साधारण शब्दों में आप ने जो आंतरिक उद्देल्नो को प्रदर्शित किया है बहुत बेहतरीन है आप[ के ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ उम्मीद है येसी और रचनाये मिलती रहेगी
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
bahut khoob.
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