आऊँगी मैं तुमसे मिलने
लाँघकर चीन की दीवार
तैर कर हिंद महसागर
पार कर अफ्रीका के जंगल भी
चढ़ कर एवरेस्ट की छोटी
उड़ कर आकाश में भी
नही झिझकुंगी एक बार भी
बनाने कबूतर को संदेशवाहक
या उल्लू को पथ प्रदर्शक में
मैं चिड़िया के पँखो पर हो सवार
आकाश पार कर तुमसे मिलने आऊँगी
मैं डाल्फिन पर बैठकर
सागर की गहराइयों को पार कर तुमसे मिलने आऊँगी
मैं जुगनू को साथ लेकर
अंधेरी रात में तुमसे मिलने आऊँगी !
Friday, September 4, 2009
तुमसे मिलने
Posted by सुरभि at 1:42 AM
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7 comments:
बहुत खुब लाजवाब रचना।सुन्दर अभिव्यक्ति
wow.....interesting bahut buland hausle hai aapke to :-)achchi rachna
बेहतरीन रचना
उत्कट संकल्प की रचना
बहुत ही अच्छी, बेहतरीन।।।।।
चीन की दीवार चढ़कर हिंद महासागर लाँघ कर आउंगी ..बहुत बढ़िया ..बेहतर अभिव्यक्ति शुभकामनायें ..!!
achiumang hai unse milne ki /sahaj v sunder prastuti
सुन्दर भाव! और क्या प्रतीक हैं!!
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