Friday, September 4, 2009

तुमसे मिलने

आऊँगी मैं तुमसे मिलने
लाँघकर चीन की दीवार
तैर कर हिंद महसागर
पार कर अफ्रीका के जंगल भी
चढ़ कर एवरेस्ट की छोटी
उड़ कर आकाश में भी
नही झिझकुंगी एक बार भी
बनाने कबूतर को संदेशवाहक
या उल्लू को पथ प्रदर्शक में
मैं चिड़िया के पँखो पर हो सवार
आकाश पार कर तुमसे मिलने आऊँगी
मैं डाल्फिन पर बैठकर
सागर की गहराइयों को पार कर तुमसे मिलने आऊँगी
मैं जुगनू को साथ लेकर
अंधेरी रात में तुमसे मिलने आऊँगी !

7 comments:

Mithilesh dubey said...

बहुत खुब लाजवाब रचना।सुन्दर अभिव्यक्ति

प्रिया said...

wow.....interesting bahut buland hausle hai aapke to :-)achchi rachna

M VERMA said...

बेहतरीन रचना
उत्कट संकल्प की रचना

Nitish Raj said...

बहुत ही अच्छी, बेहतरीन।।।।।

वाणी गीत said...

चीन की दीवार चढ़कर हिंद महासागर लाँघ कर आउंगी ..बहुत बढ़िया ..बेहतर अभिव्यक्ति शुभकामनायें ..!!

Unknown said...

achiumang hai unse milne ki /sahaj v sunder prastuti

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

सुन्दर भाव! और क्या प्रतीक हैं!!