माँ
दिया तुमने मुझे वरदान जीवन का
दी तुमने ही मुझे ये हसीन ज़िंदगी
आई मैं इस दुनिया में तुम्हारा दामन थामकर
सीखा है चलना मैने तुम्हारी उंगली पकड़कर
खोली जब आँखे मैने तुम्हे ही देखा था पहली बार
मेरी एक हँसी पर तुम वारी जाती थी
मेरे एक आँसू पर तुम घबरा सी जाती थी
मेरी एक छींक पर तुमने सारी रात जागकर काटी
मेरी एक ज़िद पर तुम दुनिया सारी ला देती
माँ ही बोला था मैने जीवन का पहला शब्द
तब तुम्हारी आँखो में एक चमक सी आई थी!
माँ
दिया तुमने मुझे वरदान जीवन का
दी तुमने ही मुझे ये हसीन ज़िंदगी
खेलती है होंठो पर मेरे तुम्हारी ही मुस्कान
वाणी से मेरी निकलते हैं तुम्हारे ही सुर
झलकती है चेहरे से तुम्हारी सी आभा
धैर्य है मुझमे तुम्हारे ही जैसा
घटा है कशों मे मेरे तुम्हारे जैसी
हृदय में है मेरे तुम्हारे जैसा प्यार
बातों में है मेरे तुम्हारी जैसी शुचिता
संस्कार है मुझमे तुम्हारे ही दिए हुए
लय है ज़िंदगी में तुम्हारे जैसी.
माँ
दिया तुमने मुझे वरदान जीवन का
दी तुमने ही मुझे ये हसीन ज़िंदगी!
9 comments:
man ko samarpit bhavpurn rachna.
very nice post. Pls keep it.
Surabhi ji,
Ma par apane bahut sundar aur bhavnapoorn kavita likhi hai.
isakee jitani bhi tareef kee jay kam hai.
HemantKumar
aapki rachana bahut hi achhi hai..
badhai.....
माँ
दिया तुमने मुझे वरदान जीवन का
दी तुमने ही मुझे ये हसीन ज़िंदगी
मॉ ही तो है जो जन्म के समय पुनर्जन्म लेती है.
मॉ को मेरा भी सलाम
"माँ"
achchaa likhti ho lekin nirantartaa jaroori hai ...
Yakeenan dil se niklee rachna hai.
{ Treasurer-T & S }
सही कहा आपने, मां शब्द ही ऐसा है जिसकी ममता के आगे ब्रह्मांड भी छोटा पड़ जाता है. मेरे नए पोस्ट में भी आपको अ्पने विचारों जैसी ही झलक मिलेगी.
अति सुन्दर रचना!!
माँ की महिमा तो ऎसी है,जिसे कि शब्दों में भी ब्यां नहीं किया जा सकता!!
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