कभी यहाँ कभी वहां मेरी कल्पना का कोई एक ठिकाना नहीं...कोई एक पता नहीं...शब्द जाने कहाँ से आ बहते जाते हैं जैसे रात्रि में मोगरे की खुशबू बहती है...चाहूँ तो एक पल में तीनो जहां महसूस कर लूं और चाहूँ तो तीनो जहां से छुप जाऊं...सूरज की पहली किरण सी कभी अंधियारी रातों में जुगनू की चमक सी...कभी तितली के रंगों सी सुन्दर हूँ तो कभी फूलों से बहती सुरभि सी....असंभव शब्द मेरे कोश में नहीं...सारा जहां इश्क़मय हो...कहीं कोई द्वेष,नफरत का रंग ना हो...बस इसलियें मैं छलकाती हूँ इश्क के रंग ...
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