यह कविता मेरे बचपन की सबसे सुनहरी स्मृति है. जो मुझे आज तक याद है. इस कविता के साथ ही मैने पहली बार मंच पर अकेले प्रस्तुति दी थी 15 अगस्त के अवसर पर. तब मैं कक्षा 5 में पढ़ती थी. इस कविता के बाद से विद्यालय में सब मुझे "क्यों भाई क्यों" के नाम से बुलाने लगे थे. यह कविता आज़ादी के काल की है गाँव गाँव में आज़ादी की अलख जगायी और इस कविता का अनेक भाषाओं में अनुवाद भी किया गया. कविता के बोल पूरी तरह से मुझे याद नही फिर भी कोशिश कर रही हूँ आप सबसे साथ इसे बाँटने की-
क्यों भाई क्यों
क्यों क्यों क्यों?
आसमान में इतने सारे
चमचम क्यूँ करते हैं तारे
इंद्रधनुष के सातों रंग हमें
लगे क्यूँ इतने प्यारे?
क्यों भाई क्यों
क्यों क्यों क्यों?
जवा कुसुम एक अकेला
होता क्यूँ है इतना लाल
झिलमिल झिलमिल करता रहता
जूही-चमेली का क्यों जाल?
क्यों भाई क्यों
क्यों क्यों क्यों?
फ़र फ़र कोवे तोते
आसमान में क्यों उड़ जाते
बिल्ली मौसी के बालों में पंख
नही फिर क्यों उग आते?
क्यों भाई क्यों
क्यों क्यों क्यों?
छोटे छोटे रामू राधा
रोज फिरे क्यूँ माँ के साथ
बर्तन घिसते, डाँटे सुनते
फिर भी नंगें , फैले हाथ?
क्यों भाई क्यों
क्यों क्यों क्यों?
क्यूँ है भूख ग़रीबी क्यों है
क्यों अनपढ़ है,निर्धन क्यों है
क्यों ना मिले न्याय सभी को
क्यों फैला है भ्रष्टाचार ?
क्यों भाई क्यों
क्यों क्यों क्यों?
आओ हम सब मिलके सोचे
हम सब एक परिवार
किसने की है बम की साज़िश
क्यों इतने सारे हथियार?
ले भाई ले हम सब ले!
Sunday, March 21, 2010
क्यों भाई क्यों
Posted by सुरभि at 6:13 PM 9 comments
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