अलगनी में सुखाये थे कुछ ख्वाब धूप में मैंने,
बोलो सूरज क्या तुमने देखे हैं?
बुने थे कुछ सपने मैंने दिन ढले,
क्या चाँद तुमने ओढे हैं?
तह कर अलमारी में सजाया मैंने तब भी
चोरी हुए सब ख्वाब मेरे ,
तब मैंने ख्वाबो का एक कमरा बनाया
पर लगता है उसमे भी कोई आया
गुमसुम क्यूँ हो रोशनदान कहीं तुमने तो नहीं चुराए सब ख्वाब मेरे!
Friday, December 12, 2008
Posted by सुरभि at 1:20 AM 3 comments
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